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पानी और आयुर्वेद (भाग १)

उषाकाले जलपान गुण- उषाकाल मतलब सूर्योदय के पूर्व काल
‘ सवितु: समुद्यकाले प्रखरुती:सलिलस्य पिबेदष्टो ।
* रोगजरापरिमुक्तों जिवेदंवत्सरशतं साग्रम ।। भा.प्र.
‘ सूर्य के उदय होने के आसन्न समय में जो आठ प्रखुती (६४० मिली) *जल
: पीता है, वह रोग तथा वृद्धता से मुक्त होकर सौ वर्ष से अधिक जीता है।

 आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य ने ब्रह्म मुहूर्त के समय निंद से उठना चाहिए। ब्रह्म मुहूर्त मतलब
सूर्योदय के पहले 96 मिनट ।

उसके बाद ईश्वर का चिंतन करना चाहिये ओर उसके बाद पानी पिने का प्रयोजन बताया गया
है। जो वात का काल रहता है।
छलेकिन इसका गलत अर्थ लेके अभी मनुष्य अपने समय से सुबह उठकर पानी पी रहा है जिससे
शरीर में कफ के कारण नानाविकार ( भूक न लगना, पेट फूलना, डकारे आना) निर्माण होते है।

व्योंकी सुबह 6 से ।0 का समय कफ का रहता है। उस समय आप ज्यादा पानी पियोगे तो अग्नि
और भी मंद हो जाती है।

उसके बाद आप जो भी खाओगे तो उसका अच्छे तरह से पचन नहीं होता और बिमारी पैदा हो
जाती है।

.(* पानी की मात्रा और.पात्र  अभी के समय और मनुष्य के प्रकृति , व्याधि के
अनुसार भिन्न भिन्न हो सकती है। )