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पानी और आयुर्वेद (भाग ३)

पानी के गुण –

अजीर्णे भेषजम वारि जीर्णे व्ारि बलप्रदम।
भोजने चामृतम वारि रांत्रौ वारि विषप्रदम।। शा.नि.

।  यदि मनुष्य अजीर्ण में केवल कोष्ण जल का सेवन करता है तो वह उत्तम औषध जैसा

| फलदायी देता है।
“ अर्थात यदि किसी मनुष्य को अजीर्ण हुआ हो तो, उस मनुष्य ने किसी प्रकार का आहार न

लेकर केवल उपवास और कोष्ण जल का सेवन करता है तो अजीर्ण ठीक होकर उससे होने
: वाली बिमारीयाँ रुक सकती है।

 भोजन जीर्ण हो जाने के बाद पानी का सेवन बलदायी रहता है।

भोजन करते समय पानी पीना अमृत के समान है।
“ इसका वर्णन हमने पानी और आयुर्वेद (भाग २) में भी किया हुआ है कि भोजन करते समय पानी

क्‍ पिना है और भोजन जीर्ण होने के बाद मतलब लगभग २ घंटे के बाद पानी पीना है।

रात में ज्यादा पानी पिने से शरीर पर विष के समान परिणाम करता है |

_> रात का समय ये स्वाभविक रूप से वात दोष का रहता है और पानी स्वाभाविक रूप से गुण में
शीत रहता है इसलिय इस काल में शीत गुणयुक्त पदार्थ का सेवन नहीं करना चाहिये | यदि किया
तो उससे शरीर में सर्दी, सिरदर्द, नेत्र-कर्णगत व्याधी  ऐसे अनेक बीमारियाँ हो सकती है